कैसे जलता है कोरोना कचरा

मंडीदीप की आईडब्लूएमपीएल फैक्ट्री में 11 सौ डिग्री तापमान पर प्रतिदिन नष्ट किया जा रहा 750 से 1200 किलोग्राम तक कोरोना कचरा
कन्वियर से सीधे मशीन में जाता कोरोना कचरा
एशियन रिपोर्टर संवाददाता मंडीदीप - कोरोना वायरस अपने साथ बहुत सारी चुनौतियां लेकर आया है। उनमें से एक है कोरोना की वजह से निकलने वाला कचरा। कोविड-19 के ट्रीटमेंट, डायग्नोसिस और क्वारंटीन के दौरान कई तरह की चीज़ों का इस्तेमाल होता है। कोरोना जैसी खतरनाक महामारी के कचरे को निष्पादित करना भी कम खतरनाक नहीं है। कोरोनावायरस कचरा के संक्रमण का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 2 लेयर प्लास्टिक बैग में रखें जाने के बाद भी कलेक्शन प्वाइंट से लेकर प्रोसेसिंग प्लांट में जलाने तक विशेष सावधानी रखी जाती है। इतना ही नहीं जहां सामान्य बायो मेडिकल वेस्ट को सामान्य तौर पर 850 डिग्री तापमान पर तो वहीं कोरोना कचरे को 1100 डिग्री टेंपरेचर पर जलाना पड़ता है। तब कहीं जाकर इस खतरनाक वायरस को नष्ट किया जा सकता है। नगर में इन दिनों जिले के साथ भोपाल के सभी छोटे-बड़े करीब 600 सेंटरों से प्रतिदिन निकलने वाले कोरोना कचरे को नगर के औद्योगिक क्षेत्र स्थित आईडब्लूएमपीएल फैक्ट्री के इंनसीरेटर में जलाया जा रहा है। 
इंसीनरेटर प्लांट की एक झलक

कोरोना वायरस कचरा जलाने में हवा (ऑक्सीजन) तक नहीं लगती 

खास बात यह है कि इसको जलाना इतना आसान भी नहीं है। इस खतरनाक वायरस को जलाने में ऑक्सीजन का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए डॉक्टरों के लिए जैसे आईसीएमआर की गाइड लाइन बनाई गई है। उसी प्रकार कोरोनावायरस कचरा के लिए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की तरफ से अलग से प्रोटोकॉल बनाया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कचरा इतना सेंसिटिव होता है कि इसमें छोटी सी चूक काफी लोगों को संक्रमित कर सकती है। राजधानी के साथ रायसेन जिले में प्रतिदिन 750 से 1200 किलो कोरोनावायरस कचरा निकल रहा है। कोरोनावायरस कचरा उठाने की जिम्मेदारी नॉर्मल मेडिकल वेस्ट उठाने वाली निजी कंपनी आईडब्ल्यूएमपीएल को ही सौंपी गई है। कंपनी के डायरेक्टर दीपक शाह ने बताया कि प्रोटोकॉल के अनुसार ही कोरोनावायरस कचरा उठाया जाता है। जैसे-जैसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है, कचरा भी बढ़ रहा है। 2 माह में ढाई गुना कचरा बढ़ गया है। कोरोना वायरस कचरा उठाने के लिए 10 वाहनों को लगाया गया है। इनमें से दो रिजर्व रखे जाते हैं, जबकि 2 से कोरोना कचरा कलेक्ट किया जाता है। कोरोना कचरा कलेक्ट करने के लिए 45 कर्मचारी लगे हुए है। जिन्हें पीपीई किट उपलब्ध कराई गई है। कोरोना के चलते अधिकांश हॉस्पिटल में रुटीन चेकअप नहीं हो रही है। जिससे रूटीन वेस्ट कम हो गया है और कोरोना वेस्ट बढ़ गया है।
आधुनिक मशीनों का किया जाता है उपयोग

कैसे नष्ट होता है कोरोना कचरा

कंपनी के डयरेक्टर शाह ने बताया कि पीसीबी के नियम है कि कोरोना वेस्ट को उसी दिन निष्पादित किया जाए। इसको जलाने में बड़ी सावधानी रखी जाती है। हमारे इंनसीरेटर की क्षमता 1 घंटा में 250 किलोग्राम कचरा जलाने की है। कचरा जलाने की प्रक्रिया 3 चेंबर में संपन्न होती है। पहले चेंबर में 800 से 850 टेंपरेचर होता है जबकि दूसरे चेंबर में टेंपरेचर 1100 डिग्री तक होता है। खास बात यह है कि तीसरे चेंबर में हवा नहीं जाती है, यानी बिना ऑक्सीजन के ही कचरा जलाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस खतरनाक कचरे को जलाने से पहले बड़ी सावधानी रखी जाती है। कचरा कलेक्ट करने वाले वाहन को प्लांट में घुसने से पहले और बाहर जाने के पूर्व पूरी तरह से सैनेटाइज किया जाता है। ताकि इसका संक्रमण प्लांट तक ना पहुच पाए। उन्होंने बताया कि कचरे को कर्मचारियों से ना डलवाकर सीधे-सीधे कन्वीनर बेल्ट की मदद से इंसीनरेटर मैं डाल दिया जाता है। कचरा कन्वीनर बेल्ट से इंसीनरेटर में पहुचने के पूर्व पहले चैंबर के गेट खुल जाते है, दूसरे चैंबर में कचरा पहुचने के बाद पहले चैंबर के गेट ऑटोमेटिक लॉक हो जाते है। उसके बाद एक फीट नीचे जब कचरा दूसरे चैंबर में जाता है तो तीसरे चैंबर के गेट खुल जाते है। फिर तीसरे चैंबर में कचरा पहुचता है तो दूसरे चैंबर के गेट स्वत: ही बंद हो जाते है। जिससे वहां तक हवा नहीं पहुच पाती और कचरा बिना ऑक्सीजन के जलता है। जिससे इसके अंदर फरजिन गैस बनती है।

क्या होता है कोरोना कचरा

पीपीई किट, मास्क, ग्लबस, कैंप, मरीज द्वारा उपयोग की गई सामग्री और इलाज के दौरान निकलने वाली चीज़ें ये सब कोरोना कचरा होता है।

पीसीबी को भेजी जाती है रिपोर्ट

कोरोनावायरस कचरा के कलेक्शन से लेकर नष्ट होने तक की सारी प्रक्रिया का रिकॉर्ड पीसीबी को भेजा जाता है। कंपनी के अधिकारी शाह ने बताया कि कोरोना कचरा कलेक्शन में लगे 45 कर्मचारियों की प्रतिदिन स्क्रीनिंग की जाती है। ड्राइवर वा हेल्पर के पीपीई किट उतारते ही उन्हें सैनिटाइज किया जाता है। ऐसे ही प्रक्रिया प्रोसेसिंग टीम के साथ भी की जाती है। कर्मचारियों की डिटेल भी पीसीबी को भेजी जाती है।

हाई रिस्की काम, फिर भी कोरोना वॉरियरर्स नहीं

कोरोनावायरस के संक्रमित मरीजों के इलाज में जिस तरह डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की टीम जान जोखिम में डालकर जुटी हुई है। उसी प्रकार कोरोनावायरस कचरा के संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए बायो मेडिकल वेस्ट उठाने वाली इस कंपनी के कर्मचारी भी जुटे हुए हैं। यह वो कर्मचारी है, जो अस्पतालों से कोरोना का खतरनाक कचरा उठाते है, लेकिन फिर भी इन्हें अब तक कोरोना की लड़ाई का योद्धा नहीं माना जा रहा है।

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