औद्योगिक नगर में कैसे बढ़ी हरियाली

औद्योगिक क्षेत्र की लगभग 650 फैक्ट्रियों की 300 एकड़ जमीन पर लहलहा रहे सवा लाख से अधिक पेड़
पर्यावरण संरक्षण के साथ सुन्दरता भी बढ़ा रहे हैं वृक्ष

"एशियन रिपोर्टर"

कथक जैन मंडीदीप - औद्योगिक क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त कर शुद्ध वातावरण बनाने एवं हरियाली बढ़ाने के लिए एनजीटी, पीसीबी और एकेवीएन द्वारा किए गए प्रयास अब सार्थक और सफल होते दिख रहे हैं। इन एजेंसियों ने क्षेत्र के उद्यमियों से उद्योगनीति के प्रावधानों का कडाई से पालन कराया। इसी का परिणाम है कि आज औद्योगिक क्षेत्र में हरियाली का जंगल लहलहाने लगा हैं। क्षेत्र की करीब 650 फैक्ट्रियों में 10 प्रतिशत भूमि हरियाली के लिए आरक्षित होने से यहां की 300 एकड़ जमीन पर सवा लाख से अधिक पेड़ लगे है। खास बात ये है कि शासन की इन महत्वपूर्ण संस्थाओं के आदेश पर औद्योगिक क्षेत्र में तो अमल हो रहा हैं। परंतु नगरीय क्षेत्र में पालन होता नहीं दिख रहा हैं। जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही की लपट में पौधे लगाने की अहम योजना झुलस गई। नपा अफसरों द्वारा फाइलों में तो खूब हरियाली बढ़ाई जाती है, मगर धरा हर बार खाली की खाली ही रह जाती है। इस मामले में जिम्मेदारों को भी आदेश की पालना कराने की परवाह नहीं है। लापरवाहों पर कड़ी कार्रवाई न किए जाने का ही नतीजा है कि नगरीय क्षेत्र में हरियाली नहीं बढ़ पा रही हैं।
मंडीदीप इंडस्ट्रीयल एरिया तीन हजार एकड़ में फैला है। कंपनी एक्ट के अनुसार उद्योगपतियों को दस प्रतिशत भूमि पर पौधे लगाना जरूरी है। एकेवीएन के ईई एके सेंगर बताते है कि उद्योगनीति में पौधा लगाना अनिवार्य किया गया है। इसके तहत लीज लैंड में स्माल स्कैल इंडस्ट्रीज (एसएसआई) को तीन साल एवं मीडियम एवं लार्ज स्कैल इंडस्ट्रीज (एमएसआई) को पांच सालों में दस प्रतिशत भूमि पर पौधे लगाना जरूरी है। ऐसा न करने पर प्रीमियम का दस फीसदी भुगतान करने का प्रावधान भी है | इन्ही नियमों का कड़ाई से पालन कराते हुए इस क्षेत्र को हरित क्षेत्र के रुप में विकसित कराया गया है । वर्तमान में नगर के सभी उद्योगों में करीब सवा लाख से अधिक पेड़ लगे हुए हैं।

एनजीटी के निर्देश पर संवेदनशील हुए उद्योग प्रबंधक

औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप का एक मनोहारी दृष्य
मालूम हो कि 5 साल पहले विश्व धरोहर भीम बैठिका और भोजपुर के शैलचित्रों को मंडीदीप के औद्योगिक प्रदूषण से खतरा मंडराने के बाद एनजीटी ने उद्योगों समेत विभिन्न एजेंसियों को ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के निर्देश दिए थे। माना जा रहा है कि इसके बाद ही पौधे लगाने के काम में तेजी आई। अब फैक्ट्री संचालक उद्योगनीति के प्रावधानों का पालन तो कर ही रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण को अपना दायित्व समझ उसे भी निभा रहे हैं। 


नही हुआ पौधों का ऑडिट

अक्सर पौधों की सलामती पर अफसरों का तर्क होता है कि उन्हें गाय खा गई या बकरी चर गई। इसी पुरानी परंपरा पर लगाम लगाने के लिए एनजीटी ने 3 साल हरियाली प्रोजेक्ट में पौधों के ऑडिट की शर्तें जोड़ी थीं कि पौधे के पेड़ बनने तक उसके संरक्षण की जबावदारी भी लेनी होगी। पौधे को लगाने के पहले और बाद में उसका पूरा हिसाब रखना जरुरी किया गया था। यहां तक कि पौधे किस तरह बड़े हो रहे हैं इसके भी फोटो रिकॉर्ड के तौर पर रखने के आदेश थे। इतना ही नहीं निगरानी के लिए नोडल ऑफिसर भी नियुक्त किए जाने थे। जिनके द्वारा निगरानी कर रिपोर्ट जिला प्रशासन को देनी थी। लेकिन अफसरों  ने धरातल पर पौधों का ऑडिट करने की बजाए कागजों में ही जादूगरी कर ली। 

लापरवाही की लपट में झुलस गई योजना

5 साल पहले एकेवीएन, पीसीबी व नपा ने मिलकर नगर को हरा-भरा बनाने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने एक महत्वपूर्ण योजना बनाई थी। इसके तहत तीनों ही एजेंसियों द्वारा पौधा लगाने की शर्त पर ही बिल्डिंग परमीशन तथा प्रदूषण प्रमाण पत्र समेत अन्य अनुमतियां दी जानी थीं | लेकिन अफसरों की सुस्ती इस महत्वपूर्ण योजना पर भी भारी पड़ गई। इसी तरह नपा ने बीते वर्ष दस हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा था, मगर क्रियान्वयन के अभाव में लक्ष्य के दस फीसदी पौधे भी नहीं रोपे जा सके। 

इनका कहना है -

मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र में मापदंडों के हिसाब से ही पौधारोपण हुआ है। यही कारण है कि यहां बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगे हुए हैं। हम आगे भी इस पर अमल कराएंगे। - आरआर सेंगर, रीजनल ऑफिसर, पीसीबी मंडीदीप

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