मजदूरों की कमी के चलते महँगी होगी चावल की थाली

मजदूरों की कमी से धान के रकबे में आ सकती है 12 से 15 हजार हेक्टेयर की कमी, सोयाबीन की नई वैरायटी आने से रकबा बढ़ने की उम्मीद, मक्का का भी बढ़ेगा रकबा

कहीं थाली से गायब न हो जाये चावल
कल्याण जैन मंडीदीप - कोरोना का प्रभाव इस बार खरीफ सीजन की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है अब तक सब डिवीजन के अधिकांश किसान धान की फसल को अधिक महत्व देते आए हैं | पिछली बार क्षेत्र में 45  हजार हेक्टेयर रकबे में धान की फसल उगाई गई थी, लेकिन इस साल धान की रोपाई करने के लिए मजदूरों की भारी कमी आड़े आ रही है, ऐसे में धान उत्पादक किसानों के सामने संकट खड़ा हो गया है, और अब वे सोयाबीन की फसल करने का मन बना रहे हैं | यही कारण है कि बीते वर्ष सोयाबीन की खेती का रकबा 1000- 1200 हैक्टेयर था जो इस साल बढ़कर 10 हजार हैक्टेयर होने का अनुमान है | वहीं मक्का का रकबा भी 2 से बढ़कर 7000 हेक्टेयर तक बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही हैं | इस तरह धान का रकबा 45 हजार से घटकर 30 -32 हजार हेक्टेयर तक सिमट सकता है |
सोयाबीन का खेत तैयार करता किसान
खरीफ सीजन की मुख्य फसल सोयाबीन मानी जाती है मगर पीला सोना कहे जाने वाले सोयाबीन पिछले कई सालों से अतिवृष्टि के चलते किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होता रहा है | जिसके चलते किसानों का धान की तरफ तेजी से आकर्षण बड़ा था लेकिन इस बार धान रोपाई के लिए मजबूर ना मिलने और सोयाबीन की नई वैरायटी आरवीजी 2001- 4 के आने और इसमें उत्पादन अच्छा होने से किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं और वह इसी के अनुसार खेतों को तैयार भी कर रहे हैं ऐसे में क्षेत्र के किसान इस साल धान के साथ-साथ सोयाबीन की भी खेती करेंगे | दाहोद के किसान शुभम नागर ने बताया कि कोरोना के कारण बिहार और यूपी का मजदूर अपने गांव वापस लौट गया है, जिससे अब किसानों के सामने धान का रोपा लगाने की समस्या खड़ी हो गई है, इस कारण अधिकांश किसानों ने सोयाबीन की नई किस्म लगाने का मन बना लिया है | कृषि अधिकारी भी बता रहे हैं कि इस वैरायटी का सोयाबीन प्रति हेक्टेयर 15 से 18 क्विंटल की उपज देगा, इसका मूल्य भी 6600 रुपए है शुभम ने कहा कि यदि मौसम किसानों के अनुकूल बना रहा तो सोयाबीन की इस नई किस्म से किसान फायदे में रहेंगे |

अधिकांश किसान धान की खेती को मानते हैं फायदे का सौदा -

क्षेत्र के किसानों को मजदूर ना मिलने से भले ही धान का साथ छोड़ने को मजबूर कर दिया हो मगर अब भी कई किसान धान को ही लाभकारी मानते हैं उनका कहना है कि सोयाबीन की फसल अतिवृष्टि की स्थिति में खराब हो जाती है वहीं धान मैं अधिक बारिश होने पर भी नुकसान नहीं होता | सतलापुर के किसान फूलचंद वर्मा ने बताया कि उन्होंने 3 वर्ष पहले अपने खेत में सोयाबीन की फसल बोई थी, जो अधिक बारिश होने से पूरी तरह चौपट हो गई थी | इसलिए अब तो वह धान की ही खेती करते हैं धान की फसल में अधिक बारिश होने पर भी नुकसान नहीं होता | वहीं क्षेत्र में काली मिट्टी धान के अनुकूल है जिसके चलते इस क्षेत्र में पूसा बासमती एवं धान की अन्य किस्मों की अच्छी पैदावार होती है |

इसलिए और बड़ा रुझान -

इटायाकला के किसान चंदन सिंह पटेल बताते हैं कि प्रदेश सरकार द्वारा धान को समर्थन मूल्य पर खरीदने से किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिलने लगा है इससे भी क्षेत्र में किसानों का धान की खेती के प्रति रुझान बढ़ रहा है |

तैयार कर रहे धान के गटे -
जोरों से कर रहे खेत तैयार

धान की सिंचाई के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में जरूरी है इसके अलावा धान की फसल में पर्याप्त पानी व मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए छोटी इकाइयों में इसकी रोपाई की जाती है जिसके लिए किसानों ने अपने खेतों में छोटे आकार के गटे बनाने के साथ ही धान का रोपा डालना भी शुरू कर दिया है |
इस बार  कोरोना महामारी के कारण  धान की रोपाई  का कार्य  बहुत प्रभावित हो रहा है, मजदूर ना मिलने से किसान धान का रोपा  नहीं डलवा पा रहे हैं | ऐसे में अब विकासखंड के अधिकांश किसानों ने सोयाबीन की नई किस्म का उत्पादन करने का मन बना लिया है, विभाग द्वारा भी ऐसे किसानों को बीज उपलब्ध कराया जा रहा है | - डीएस भदोरिया, वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी,औबेदुल्लागंज

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